मोटापे के दुश्मन, मेरे दुश्मन...

Posted on
  • Tuesday, September 13, 2011
  • by
  • महेन्द्र श्रीवास्तव
  • in

  • ( चेतावनी.. अगर आप कमजोर दिल के हैं और किसी तरह की बीमारी से पीड़ित हैं तो प्लीज इस लेख से दूर रहें। अगर आप मोटे हैं और मोटापे को बरकरार रखना चाहते हैं तो यह लेख आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। हां एक बात और अगर आपको ईश्वर में आस्था नहीं तो इस लेख को पढने का कोई फायदा नहीं होगा। यह लेख सच्ची घटनाओं पर आधारित है,लेकिन इसके पात्र काल्पनिक हैं। )

    सच सुनना है, तो सुनिये..मैं अपने मोटापे के दुश्मनों को अपना दुश्मन मानता हूं। पता नहीं क्या बात है, मेरे मोटापे से मुझसे ज्यादा परेशानी मेरे दोस्त को ही रही है। बात की शुरुआत भी मोटापे से होती है और खत्म भी इसी विषय से। यानि मिलते ही पहला सवाल आज सुबह मार्निंग वाक पर गए थे, जबाब, नहीं जा पाया। आलसी हैं आप, आपको खराब नहीं लग रहा है, पेट का क्षेत्रफल लगातार बढ रहा है। जी नहीं, मुझे तो इससे बिल्कुल परेशानी नहीं है। दोस्त के बातचीत का अंदाज बदल जाता है, आपको क्यों होगी। अस्पताल जाएंगे, तो वापस नहीं आ पाएंगे। खैर जितनी लापरवाही हो चुकी है, ठीक है, अब रास्ते पर आ जाइये और कल से मार्निंग वाक नियमित होना चाहिए। इस सलाह से बात खत्म होती है।

    अब देखिए, मेरा एक और दोस्त है, बेचारे का पहने हुए सभी कपडों के साथ कुल वजन 42 किलो है। दुबला पतला होने पर भी लोग उसे जीने नहीं दे रहे। मैं देखता हूं कि अक्सर इस मित्र को लोग उसे सलाह देते हैं कि भाई अगर ट्रेन से सफर करो, तो तुम यात्री टिकट ना लिया करो, पार्सल की तरह बुक होकर जाया करो, आधे किराए में पहुंच जाओगे। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि हम दोनों अगर एक साथ किसी पार्टी में चले गए तो दोनों से एक ही सवाल होता है, अरे ये क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं ? मुझे लगता है कि जो मैने कहना चाहता हूं, आप थोडा बहुत तो समझ गए होंगे।

    मेरी बडी बहन हैं, रोजाना सुबह सुबह बाबा रामदेव की सीडी लगाकर योग करती हैं। ना जाने कौन कौन सी सब्जियों के जूस पी जाती है उनके यहां। एक बहन ने योग शुरू कर परिवार में ऐसा माहौल बना दिया कि परिवार में ज्यादातर महिला सदस्य योग करने लगीं। हालाकि सच्चाई ये है उनका बजन 78 किलो से एक किलो भी कम नहीं हुआ, लेकिन हां आत्म संतोष बहुत ज्यादा है। मैने एक दिन पूछा, तुम ये सब क्यों करती हो। "आराम" से तुम्हारी कोई दुश्मनी है। क्यों छुट्टी वाले दिन भी सुबह सुबह उठकर उछल कूद करती हो। बस बिगड गईं, आपे से बाहर, तुम्हें अभी कोई बात समझ में नहीं आएगी, जब डाक्टर के चक्कर में पडोगे तब समझ में आएगा।

    मित्रों मै ईश्वरवादी हूं, मुझे ईश्वर पर पूरा भरोसा है। विद्वानों का कहना है कि भगवान ने पैदा होने के साथ ही हर आदमी की सांसे तय कर दी है। जितनी सांसे तय हैं, आप उससे ज्यादा नहीं ले सकते और ना ही उससे कम। अब महत्वपूर्ण सवाल ये है कि अगर आप जल्दी-जल्दी सांस लेगें तो जल्दी-जल्दी सांस छोडेंगे भी। जाहिर है आप कम समय में ही अपनी पूरी सांसे ले लेगें। आप आराम-आराम से सांस लेगें, तो आराम-आराम से छोडेंगे। जाहिर है लंबे समय तक आपकी सांस चलती रहेगी। फिर क्यों बेवजह की जल्दबाजी करें। अब देखिए ना घोडा कितना मेहनत करता है, लेकिन सिर्फ 20-22 साल ही जिंदा रहता है, अजगर पडा रहता है और सौ साल जिंदा रहता है। अब लोगों को तय करना है कि उन्हें लंबा जीवन जीना है या फिर छोटा। भाई लंबा जीना है तो आपको आराम-आराम से ही सांस लेना चाहिए।


    4 comments:

    रविकर said...

    घोडा चाबै घास-तृण, अजगर लीलै जीव,
    ढाई घर ये नापता, वो लागै निर्जीव |


    वो लागै निर्जीव, सरिस सरकारी अफसर,
    करता घंटा काम, खाय पर सबकुछ भरकर |


    कर उद्यम-सुविचार, जिओ चाहे कुछ थोडा,
    अजगर सा पर नहीं, जिओ रे बनकर घोडा||


    कुंडली की पूंछ --
    अजगर जीता सौ बरस, घोडा बाइस-बीस |
    घोडा हरदम बीस है, अजगर है उन्नीस ||

    Rajesh Kumari said...

    हिंदी दिवस की शुभकामनायें अच्छी मनोरंजक पोस्ट है !

    अभिषेक मिश्र said...

    Naya Concept hai. :-)

    DR. ANWER JAMAL said...

    जीवन लंबा हो या छोटा लेकिन होना सार्थक चाहिए.
    हिंदी ब्लॉगिंग को वास्तव में ऐसी ही पोस्ट्स समृद्ध करती हैं, शुक्रिया.

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