दुनिया की सबसे बड़ी भौतिक प्रयोगशाला यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के नए प्रयोग के निष्कर्ष इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं कि परमाणु से छोटे कण न्यूट्रीनो प्रकाश से भी तेज गति से चल सकते हैं। हालांकि प्रकाश और न्यूट्रीनो की गति में इस अंतर को लेकर अभी और अध्ययन की दरकार है, पर इस नतीजे ने महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को चुनौती दे दी है, जिसमें यह साबित किया गया है कि प्रकाश से अधिक किसी की गति नहीं होती।
न्यूट्रीनो विद्युत उदासीन कण है, जिसका घनत्व परमाणु से कम होता है, पर यह भारहीन नहीं होता है। इसी गुण की वजह से यह सामान्य पदार्थ के आर-पार हो जाता है। इसे यूनानी अक्षर 1 से निरुपित करते हैं। चूंकि यह विद्युत का अवशोषण नहीं करता, इसलिए यह इलेक्ट्रॉन से अलग है। इस वजह से यह विद्युत चुंबकीय प्रभाव से भी दूर रहता है, पर कमजोर सब-एटमिक फोर्स इसे प्रभावित कर सकते हैं, जिसकी सीमाएं विद्युत चुंबकत्व की अपेक्षा कम होती है। गुरुत्वाकर्षण की वजह से दूसरे पदार्थों से जुड़ने की क्षमता भी इसमें होती है।
न्यूट्रीनो की सर्वप्रथम जानकारी ऑस्ट्रेलियाई भौतिकविद् वोल्फगैंग अर्नस्ट पाउली ने 1930 में दी, और 1942 में कान-चांग वैंग ने बीटा का इस्तेमाल कर पहली बार इसका परीक्षण किया। पर इसे खोजने का दावा 20 जुलाई, 1956 को साइंस पत्रिका के अंक में क्लाइड कोवान, फ्रेडरिक रिंस, एफ बी हैरिसन, एच डब्ल्यू क्रूसे और ए डी मैकग्यूरी ने किया, जिस आधार पर फ्रेडरिक रिंस को 1995 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। 1962 में इसके अन्य प्रकार के खोजने संबंधी दावे भी किए गए। आज नाभिकीय रिएक्टरों में कृत्रिम न्यूट्रीनों का निर्माण भी किया जा रहा है, जबकि प्राकृतिक रूप से यह कॉस्मिक किरण और परमाणु नाभिक के संयोग से, नाभिकीय संलयन से, सुपरनोवा से और बिग बैंग सिद्धांत के आधार पर बनता है।
न्यूट्रीनो विद्युत उदासीन कण है, जिसका घनत्व परमाणु से कम होता है, पर यह भारहीन नहीं होता है। इसी गुण की वजह से यह सामान्य पदार्थ के आर-पार हो जाता है। इसे यूनानी अक्षर 1 से निरुपित करते हैं। चूंकि यह विद्युत का अवशोषण नहीं करता, इसलिए यह इलेक्ट्रॉन से अलग है। इस वजह से यह विद्युत चुंबकीय प्रभाव से भी दूर रहता है, पर कमजोर सब-एटमिक फोर्स इसे प्रभावित कर सकते हैं, जिसकी सीमाएं विद्युत चुंबकत्व की अपेक्षा कम होती है। गुरुत्वाकर्षण की वजह से दूसरे पदार्थों से जुड़ने की क्षमता भी इसमें होती है।
न्यूट्रीनो की सर्वप्रथम जानकारी ऑस्ट्रेलियाई भौतिकविद् वोल्फगैंग अर्नस्ट पाउली ने 1930 में दी, और 1942 में कान-चांग वैंग ने बीटा का इस्तेमाल कर पहली बार इसका परीक्षण किया। पर इसे खोजने का दावा 20 जुलाई, 1956 को साइंस पत्रिका के अंक में क्लाइड कोवान, फ्रेडरिक रिंस, एफ बी हैरिसन, एच डब्ल्यू क्रूसे और ए डी मैकग्यूरी ने किया, जिस आधार पर फ्रेडरिक रिंस को 1995 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। 1962 में इसके अन्य प्रकार के खोजने संबंधी दावे भी किए गए। आज नाभिकीय रिएक्टरों में कृत्रिम न्यूट्रीनों का निर्माण भी किया जा रहा है, जबकि प्राकृतिक रूप से यह कॉस्मिक किरण और परमाणु नाभिक के संयोग से, नाभिकीय संलयन से, सुपरनोवा से और बिग बैंग सिद्धांत के आधार पर बनता है।
2 comments:
न्युट्रीनो के बारे में रोचक और उपयोगी जानकारी देती सार्थक पोस्ट!
---हाँ , यही विष्णु है ..जिसकी गति ....सूर्य व इंद्र से भी अधिक है ....
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