एकलव्य का अंगूठा
Posted on Thursday, February 24, 2011 by रश्मि प्रभा... in
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रश्मि प्रभा (मुख्य निरीक्षिका -HBFI)
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शालिनी कौशिक (कानूनी सलाहकार-HBFI)
1 comments:
'गुरु द्रोणाचार्य जी को नाहक़ इल्ज़ाम न दो' शीर्षक से मैं एक लेख लिखकर बताऊंगा कि द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अँगूठा नहीं कटवाया था , उन्हें बेवजह बदनाम किया जाता है जैसे कि श्री कृष्ण जी और पांडवों को । महाभारत में पहले मात्र 8 हज़ार श्लोक थे और इसका नाम जय था , फिर इसका नाम भारत रखा गया और श्लोक हो गए 24 हजार । इसके बाद आज इसमें लगभग 1 लाख श्लोक पाए जाते हैं और इसका नाम है महाभारत । आज कुछ पता नहीं है कि शुरू वाले 8 हजार श्लोकों में से इसमें आज कितने श्लोक बाकी हैं और बाकी हैं भी कि नहीं ? जिस किताब में इतनी भारी मिलावट हो चुकी हो उसके आधार पर हम अपने पूर्वजों का चरित्र सही जान ही नहीं सकते ।
पंडे पुजारियों ने ज़रूर लोगों के अँगूठे और गले कटवाए और अपने जुल्म को न्याय साबित करने के लिए अपने हाथों से ऐसी बातें हमारे पूर्वजों के बारे में लिख दीं ताकि लोग उन्हें पूर्वजों की परम्परा का पालन करने वाला समझें जबकि वास्तव में ये नालायक़ महान आर्य परंपराओं को मिटा भी रहे थे और उन्हें बिगाड़ भी रहे थे ।
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