ग़ज़लगंगा.dg: इन्हीं सड़कों से रगबत थी......

Posted on
  • Sunday, July 17, 2011
  • by
  • devendra gautam
  • in
  • इन्हीं सड़कों से रगबत थी, इन्हीं गलियों में डेरा था.

    यही वो शह्र है जिसमें कभी अपना बसेरा था.


    सफ़र में हम जहां ठहरे तो पिछला वक़्त याद आया

    यहां तारीकिये-शब है वहां रौशन शबेरा था.


    वहां जलती मशालें भी कहां तक काम आ पातीं

    जहां हरसू खमोशी थी, जहां हरसू अंधेरा था.


    खजाने लुट गए यारो! तो अब आंखें खुलीं अपनी

    जिसे हम पासबां समझे हकीकत में लुटेरा था.


    कोई तो रंग हो ऐसा कि जेहनो-दिल पे छा जाये

    इसी मकसद से मैंने सात रंगों को बिखेरा था.


    अंधेरों के सफ़र का जिक्र भी मुझसे नहीं करना

    जहां आंखें खुलीं अपनी वहीं समझो शबेरा था.


    वो एक आंधी थी जिसने हमको दोराहे पे ला पटका

    खता तेरी न मेरी थी ये सब किस्मत का फेरा था.


    मैं अपने वक़्त से आगे निकल आता मगर गौतम

    मेरे चारो तरफ गुजरे हुए लम्हों का घेरा था.


    -----देवेंद्र गौतम

    2 comments:

    मदन शर्मा said...

    खूबसूरत एहसास और अभिव्यक्ति !

    DR. ANWER JAMAL said...

    लोगों ने ऐश की ख़ातिर अपना आराम खो दिया है। सुनने में यह बात अटपटी सी लगती है मगर है बिल्कुल सच !
    लोगों ने अपना लाइफ़ स्टैंडर्ड बढ़ा लिया तो केवल मर्द की आमदनी से ख़र्चा चलना मुमकिन न रहा और तब औरत को भी पैसा कमाने के लिए बाहर बुला लिया गया लेकिन इससे उसके शरीर और मन पर दो गुने से भी ज़्यादा बोझ लद गया।
    औरत आज घर के काम तो करती ही है लेकिन उसे पैसे कमाने के लिए बाहर की दुनिया में काम भी करना पड़ता है। औरत का दिल अपने घर और अपने बच्चों में पड़ा रहता है। बहुत से बच्चे माँ के बाहर रहने के कारण असुरक्षित होते हैं और अप्रिय हादसों के शिकार बन जाते हैं। छोटे छोटे बच्चों का यौन शोषण करने वाले क़रीबी रिश्तेदार और घरेलू नौकर ही होते हैं। जो बच्चे इन सब हादसों से बच भी जाते हैं, वे भी माँ के आँचल से तो महरूम रहते ही हैं और एक मासूम बच्चे के लिए इससे बड़ा हादसा और कुछ भी नहीं होता । माँ रात को लौटती है थकी हुई और उसे सुबह को फिर काम पर जाना है । ऐसे में वह चाह कर भी अपने बच्चों को कुछ ज्यादा दे ही नहीं पाती।
    इतिहास के साथ आज के हालात भी गवाह हैं कि जिस सभ्यता में भी औरत को उसके बच्चों से दूर कर दिया गया । उस सभ्यता के नागरिकों का चरित्र कमज़ोर हो गया और जिस सभ्यता के नागरिकों में अच्छे गुणों का अभाव हो जाता है वह बर्बाद हो जाती है ।
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