कई मित्र टिप्पणियाँ अक्सर, सब रचनाओं पर देते हैं।
सुन्दर-बढ़िया लिख करके, निज जान छुड़ा भर लेते हैं।।
कुछ तो बिना पढ़े ही, केवल कॉपी-पेस्ट किया करते हैं।
खुश करने को बदले में, हमको प्रतिदान दिया करते हैं।।
रचना के बारे में भी तो, कुछ ना कुछ लिख दिया करो।
आँख मूँद कर, एक तरह की, नहीं टिप्पणी किया करो।।
पोस्ट अगर मन को ना भाये, पढ़ो और आगे बढ़ जाओ।
बिल्कुल नहीं जरूरी, तुम बदले में उसको टिपियाओ।।
यदि ज्ञानी, विद्वान-सुभट हो, प्रेम-भाव से समझाओ।
अपमानित करने वाली, दूजों को सीख न सिखलाओ।।
श्रेष्ठ लेख या रचनाओं को, टिप्पणियों से मत मापो।
सत्संग और प्रवचनों को, घटिया गानों से मत नापो।।
जालजगत पर जबसे आये, तबसे ही यह मान रहे हैं।
टिप्पणियों के भूखे गुणवानों को भी पहचान रहे हैं।।
दुर्बल पौधों को ही ज्यादा, पानी खाद मिला करती है।
चालू शेरों पर ही अक्सर, ज्यादा दाद मिला करती है।।
-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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5 comments:
चलिए ठीक है!
बहुत सुन्दर ही लिख देते हैं!
शास्त्री जी की कविता रूपी टिप्पणी में सत्य, शिव और सुंदर तीनों हैं. शिव के ही कॉलम में अच्छा, बढ़िया, सुंदर, लाजवाब आदि आते हैं. बेकार, वाहियात, घटिया आदि की आवश्यकता नहीं. कुछ नए ब्लॉगर्ज़ को मैंने निजी सलाह दी थी. अब वे बहुत अच्छा न सही लेकिन मुझ से बेहतर साहित्य लिख रहे हैं.
हम भी इस बात से सहमत है ....बेकार हा है ये टिपण्णी का खेल ...रचनाकार को कमज़ोर करती है ...वो उम्मीद और सपनो पर ज्यादा निर्भर हो जाता है ...टिपण्णी को जीवन दान समझना भूल है हम सबकी ....आभार आपका ...सही बात को सबके सामने रखने के लिए
बात सही काही है आपने...
पर नए रचनाकारों को इन्ही टिप्पणियों से ही नया उत्साह मिलता है... अगर कोई एक भी टिप्पणी न करे तो वे ब्लॉगिंग छोड़ देते हैं।
ऐसे मे उनका आत्मबल बढ़ाने के उपाय भी बता दें...
Tippani men raay honi chahiye taki batchit se sahi raah mile.
Nice post.
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