गोलियाँ
आजाद होके खूब बरसतीँ हैँ गोलियाँ ,
लोगोँ को मार मारके हंसतीँ हैँ गोलियाँ ।
निर्दोष जिंदगी के घरोँ को उझाड़ कर ,
बस्ति मेँ बिना खौफ के बसतीँ हैँ गोलियाँ ।
संवेदनाएँ भूनती बस से उतार कर ,
सच्चाई ढूढ़ ढूढ़ कर डँसतीँ हैँ गोलियाँ ।
भूखोँ तड़प तड़प कर कोई दम ना तोड़ना ,
मँहगाई के भी दौर मेँ सस्तीँ हैँ गोलियाँ ।
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2 comments:
वाकई सही कह रहे हैं आप किन्तु ये ही गोलियां हैं जो सस्ती हैं बीमार के इलाज में जो काम आती हैं वे सबसे बढ़कर महंगी हैं गोलियां.विचारणीय पोस्ट...
बहुत सार्थक भावाभिव्यक्ति.सराहनीय प्रस्तुति...
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