हिंदी ब्लॉगर्स को ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं जनाब एस. एम. मासूम साहब

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  • Sunday, July 10, 2011
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  • DR. ANWER JAMAL
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  • एस. एम. मासूम
    सय्यद मुहम्मद मासूम साहब को ब्लॉग जगत में एस. एम. मासूम के नाम से जाना जाता है। वह ख़ुद तो मुंबई में रहते हैं लेकिन उनका दिल जौनपुर में रहता है। जौनपुर से अपना ताल्लुक़ क़ायम रखने के लिए उन्होंने ब्लॉग भी बनाया है और एक वेबसाइट भी बनाई हुई है, जिन पर जौनपुर के मंदिर-मस्जिद से लेकर जौनपुर की मूली और मिठाई तक के बारे में जानकारी मिल जाती है।
    इसके बावजूद ब्लॉग जगत में उनकी पहचान ‘अमन के पैग़ाम‘ की वजह से है।
    हालांकि ब्लॉग तो उनके कई हैं
    1.      हक़ और बातिल
    2.      बेज़बान
    3.      ब्लॉग संसार
    और इसके अलावा कई वेबसाइट्स भी हैं  और यू ट्यूब पर अमन पैग़ाम टी. वी. भी है।
    इसके बावजूद जब भी जनाब मासूम साहब का नाम लिया जाता है तो उनके नाम के साथ ‘अमन का पैग़ाम‘ ब्लॉग ही याद आता है।
    आखि़र इसकी वजह क्या है ?
    वजह सिर्फ़ यह है कि जनाब मासूम साहब की आमद से पहले ईश्वर, धर्म और महापुरूषों की मज़ाक़ उड़ाना यहां आम था। जिसका विरोध करने वाले भी डटकर उनका विरोध कर रहे थे। बुराई का विरोध करने वाले कम थे और कम को आम तौर पर कमज़ोर समझ लिया जाता है। कमज़ोर का साथ देने में किसी को भी अक्लमंदी
    नज़र नहीं आती बल्कि आम तौर पर इल्ज़ाम का ठीकरा उनके सिर फोड़ना ज़्यादा सुविधाजनक हुआ करता है। इस तरह बहुमत की आवाज़ को अपने ब्दों में वे लोग बयान करते हैं जो कि बहुमत का चैधरी बनने की ख्वाहिश दिल में पाले रहते हैं। ये लोग राहबर की सूरत में राहज़न और डाकू हुआ करते हैं। आजकल लीडर
    यही कर रहे हैं। सत्य और न्याय से इन्हें कोई सरोकार नहीं हुआ करता। ये लोग तो केवल यही देखते हैं कि ज़्यादा लोग किस तरफ़ हैं ?
    जनाब मासूम साहब की आमद ऐसे ही समय हुई जबकि ब्लॉगवाणी और चिठ्ठा जगत जैसे एग्रीगेटर अपनी पूरी फ़ॉर्म में थे और लोग ईश्वर और उसके धर्म की मज़ाक़ मात्र टिप्पणियां बटोरने के लिए लिखा करते थे ताकि वे एग्रीगेटर्स की हॉट लिस्ट में अपना नाम देख सकें। वे विवादित और स्तरहीन कमेंट भी मात्र इसीलिए किया करते थे कि एग्रीगेटर्स के कमेंट बोर्ड ऐसे कमेंट को तुरंत पब्लिश किया करता था। वोट और कमेंट के सहारे ही इन दोनों एग्रीगेटर्स में कोई पोस्ट टॉप पर आया करती थी और इसीलिए वोट और कमेंट पाने के लिए बहुत से हिंदी ब्लॉगर्स हद से भी नीचे गिरे हुए थे। नीचे गिरे हुए इन ब्लॉगर्स का नाम तब बहुत बुलंद था और उनमें से कछ का आज भी है।
    इन गिरे हुए ब्लॉगर्स को जब कुछ ब्लॉगर्स ने उठाने की कोशिश की तो उनकी भी मज़ाक़ उड़ानी ‘ाुरू कर दी गई। उनकी ही नहीं बल्कि उनके दीन-धर्म की भी मज़ाक़ उड़ाई गई। इससे भी आगे बढ़कर देश के प्रति उनकी वफ़ादारी पर भी सवाल खड़े किए गए और जब ऐतराज़ करने वालों को उन्होंने खरा जवाब दिया तो उन्हें जिहादी और धर्मयोद्धा तक का खि़ताब दे दिया गया। बहुमत की ग़लत नीतियों और विरोध के बाद ब्लॉगवाणी ने ख़ुद को अपडेट करना छोड़ दिया और फिर चिठ्ठाजगत भी बेजान सा हो गया। बहुत से लोगों ने अपना नाम एग्रीगेटर पर चमकता न देखा तो उन्होंने ब्लॉगिंग ही छोड़ दी।
    जनाब मासूम साहब ने इन हालात में काम करना शुरू किया और इस पूरे ब्लॉग जगत में अकेले वही ब्लॉगर हैं जिन्होंने सबको ‘अमन का पैग़ाम‘ दिया और सत्य और न्याय की बुनियाद पर दिया और बिल्कुल निष्पक्ष होकर दिया। शुरू में तो उन्हें ‘इग्नोर करो‘ की पॉलिसी का शिकार बनाया गया और बाद में उनकी नीयत और मंशा पर शक ज़ाहिर किया गया। यह सब करने वाले वे ब्लॉगर्स हैं जिन्हें बड़ा समझकर लोग अपना मार्गदर्शक बनाए बैठे हैं। इसके बाद यह भी हुआ कि उनके खान-पान को लेकर कह दिया गया कि जो आदमी
    शाकाहारी न हो वह ‘अमन का पैग़ाम‘ कैसे दे सकता है ?
    यह हरकत भी बड़े कहलाने वाले ब्लॉगर्स ने ही की।
    जनाब मासूम साहब ने यह सब देखा और दिल दुखाने वाली इन सभी बातों पर सब्र किया लेकिन ‘अमन का पैग़ाम‘ देना जारी रखा और हरेक वर्ग के अच्छे लोगों को अपने साथ जोड़ना जारी रखा। उन्होंने कभी यह नहीं देखा कि ‘कौन कह रहा है ?‘ बल्कि उन्होंने हमेशा यही देखा कि ‘क्या कह रहा है ?‘
    लोग उनके साथ जुड़ते चले गए और ‘अमन का कारवां‘ बढ़ता ही चला गया और फिर वह वक्त भी आया कि हिंदी ब्लॉग जगत में अमन क़ायम हो गया। लोग एक दूसरे के जज़्बों का भी आदर करने लगे और ईश्वर, धर्म और महापुरूषों की मज़ाक़ उड़ाने से बचने लगे। इस तरह उस दौर का ख़ात्मा हो गया जिसे हिंदी ब्लॉगर्स ने
    दंगे-फ़साद और धर्मयुद्ध नाम दे रखा था।
    कटु बहसों के अंत का श्रेय जनाब मासूम साहब के ‘अमन के पैग़ाम‘ को ही जाता है। यह बात हरेक जानता है लेकिन कोई कहने के लिए तैयार ही नहीं है। इसी का नाम मैंने ‘वर्चुअल कम्युनलिज़्म‘ रखा है। यह वह कारनामा है जिसे अंजाम देने के लिए उठे तो बहुत से ब्लॉगर्स लेकिन कर कुछ नहीं पाए। पक्षपात और गुटबंदी ने उनकी तमाम कोशिशों को बेअसर कर दिया।
    1-हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के ख़ुत्बात का संग्रह ‘नहजुल बलाग़ा‘
    और
    2- इमाम हुसैन के यादगार उपदेश
    दोनों जगह यह हक़ीक़त बिल्कुल साफ़ साफ़ बताई गई है कि सिर्फ़ वही कोशिश कामयाब होती है जिसके पीछे  सच्चाई और ईमानदारी होती है। मुहब्बत और नर्मी के साथ लोगों की भलाई के लिए अच्छाई का संदेश वह पूरी लगन से देते रहे और किसी भी फ़सादी के हमले से वह विचलित न हुए तो इसका कारण केवल यह है कि जो भी आदमी करबला के वाक़ये से अपनी रूहानी ग़िज़ा और आत्मिक शक्ति लेता है, वह कभी विचलित हो ही नहीं सकता। करबला के मैदान में सच्चाई और नेकी को क़ायम रखने की कोशिश में शहीद होने वाले हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु अन्हु और उनके साथी उनके पूर्वज और उनके बुज़ुर्ग हैं। वे बुज़ुर्ग ऐसे बुज़ुर्ग हैं जिन्हें दुनिया अपना पेशवा और अपना मार्गदर्शक मानती है। दुनिया का कोई देश और कोई नस्ल ऐसी नहीं है जो कि उन्हें आदर न देती हो। हरेक धर्म-मत के लोग उनका ज़िक्र करते हैं। हिन्दुस्तान में भी सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं बल्कि हिन्दू भाई भी उन्हें पूरा सम्मान देते हैं, उनके बारे में जब वे लिखते हैं तो पूरी श्रृद्धा के साथ लिखते हैं।
    श्री ज्ञान कुमार जी की लिखी किताब क्रमवार रूप से सामने आ ही रही है और वे भी जौनपुर के ही हैं। श्री ज्ञानचंद जी ने जिस तरह यह किताब जनाब मासूम साहब को सौंपी है उससे मासूम साहब के प्रति उनके विश्वास का पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि उनके वतन के लोग उनके प्रति किस तरह के जज़्बात रखते हैं।
    इसी क्रम में श्री अरविन्द विद्रोही जी का लेख हिंदी ब्लॉग जगत के लिए एक मील का पत्थर बन कर रह गया है। इस एक अकेले लेख ने यह हक़ीक़त हिंदी दुनिया के सामने वह हक़ीक़त खोलकर रख दी है जिसे जानने के बाद नफ़रत की बुनियाद पर बनाई गई भ्रम की दीवारें ख़ुद ब ख़ुद ही ढह गई हैं।
    इसका श्रेय भी जनाब मासूम साहब को ही जाता है। आज उनके वतन के लोग भी उनके साथ हैं और दुनिया भर में फैले हुए हिंदी ब्लॉगर्स में से भी हरेक अमनपसंद उनके साथ है। ये लोग हरेक धर्म-मत से संबंधित हैं।
    जो लोग आज उनके साथ नहीं हैं उनमें एक तादाद तो ऐसी है जो कि केवल अपनी ख़ुशी के लिए ब्लॉगिंग करते हैं, सामाजिक मुददों और आम लोगों के दुख-दर्द से उन्हें कोई मतलब ही नहीं है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि मासूम साहब से नाराज़ हैं क्योंकि पिछले 5-7 बरसों में उन्होंने नफ़रत की जो फ़ज़ा बनाई थी, वह ‘अमन का पैग़ाम‘ आ जाने से मिट कर रह गई है।
    यही वे लोग हैं जो नकारात्मक विचारों को फैलाते हैं क्योंकि ये ‘वर्चुअल कम्युनलिज़्म‘ के शिकार हैं।
    ‘अमन का पैग़ाम‘ आज एक कसौटी की शक्ल अख्तियार कर चुका है। कोई भी नफ़रत फैलाने वाला इस ब्लॉग पर नहीं आता है और अगर आ भी जाए तो ‘अमन का पैग़ाम‘ के साथ दो क़दम भी नहीं चल पाता। बहुत बड़े समझे जाने वाले बहुत से नाम ऐसे हैं जो कि यहां कभी नज़र ही नहीं आए।
    यही संकीर्णता ब्लॉगर्स को जनाब  मासूम साहब के कारनामों को स्वीकारने से रोक रही है। ऐसा नहीं है कि किसी की सराहना से उन्हें कुछ हासिल हो जाएगा बल्कि यह सराहना इसलिए ज़रूरी है ताकि लोग जान लें कि हालात कितने भी बुरे क्यों न हों लेकिन अभी ईमान ज़िंदा है और ऐसे इंसान भी सलामत हैं जो ’शांति संदेश‘ दे रहे हैं और वह रंग भी ला रहा है।
    ईश्वर साक्षी है, ख़ुदा गवाह है और अपने बंदों को वह अकेला काफ़ी है। उसकी रज़ा हासिल हो जाए तो यही बंदगी की मैराज और बुलंदी है। जो आज इससे किनारा कर रहा है, वह कल अपने ईश्वर-अल्लाह को क्या जवाब देगा ?
    जनाब मासूम साहब अपने ब्लॉग्स और अपनी वेबसाइट्स के ज़रिये इसी बात की फ़िक्र दिला रहे हैं। वह हमारा भला चाहते हैं। किसी एक का भला नहीं बल्कि सबका भला चाहते हैं। इस बात को मैंने उनकी बातचीत से ही जाना है। मैंने कई बार देखा है कि जब उन्हें मेरे लिखने के अंदाज़ में उग्रता नज़र आई तो उन्होंने बिल्कुल साफ़ कहा कि यह तरीक़ा ठीक नहीं है, आपको इसे बदलना चाहिए। हालांकि उन्होंने अपनी नापसंद का इज़्हार किया लेकिन तब भी उनका लहजा नर्म था और उसमें मुहब्बत को महसूस किया जा सकता था। जनाब मासूम साहब हमसे बड़े भी हैं और उनकी समझ भी गहरी है और बात भी सही है क्योंकि हम तो ख़ुद भी जानते हैं कि हां हमारा क़लम यहां उग्र हो गया है। कमेंट में, चैट में, ईमेल में या फिर फ़ोन पर जब भी उन्हें कोई कमी नज़र आई तो उन्होंने मुझे टोका और उन्होंने कमी ही नहीं बताई बल्कि जो बात उन्हें पसंद आई, उसकी तारीफ़ भी की।
    उन्होंने ब्लॉगिंग के संबंध में ख़ुद भी कई बार मुझसे पूछा कि आप मुझे सलाह दीजिए कि मुझे क्या करना चाहिए ?
    उनका तरीक़ा यही है कि हमेशा बेहतर सलाह देंगे और आपसे भी बेहतर सलाह चाहेंगे। वह सिर्फ़ दूसरों को सिखाते ही नहीं हैं बल्कि ख़ुद भी सीखते हैं।
    अपने व्यक्तित्व और अपनी ब्लॉगिंग को इस तरीक़े से वही शख्स बेहतर बनाया करता है जो कि अपने जीवन के सच्चे मक़सद के प्रति गंभीर हुआ करता है। यही गंभीरता ब्लॉगर्स में उनके प्रति विश्वास जगाती है और उन्हें हिंदी ब्लॉग जगत की एक हरदिल अज़ीज़ हस्ती बनाती है।
    उनका मिशन ‘अमन का पैग़ाम‘ है और वह अपने मिशन में सफल हैं। जनाब एस. एम. मासूम साहब हिंदी ब्लॉगर्स को लगातार  ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं।

    4 comments:

    Bharat Bhushan said...

    मामूम जी ने अपनी विचारधारा का संतुलन निभाया
    है जो प्रशंसनीय है.

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    डॉ. अनवर ज़माल साहिब!
    आपने ‘अमन के पैग़ाम‘ देने वाले एस.एम. मासूम के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की है!
    इस शनिवार से ये चर्चा मंच के चर्चाकार के रूप में नजर आयेंगे!

    vijay kumar sappatti said...

    janaab masoom bhai ji ki jitni tareef kiya jaaye wo kam hai .,.. badhayi

    Anonymous said...

    बहुत ही अच्छि जानकारी दि है सर,जी आपनेँ धन्यवाद..?

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