विवशता
बड़ी देर से
इंतजार था कुत्ते को
रोटी के टुकड़े का
और जैसे ही
इंतजार समाप्त होने को आया
घट गई एक अनोखी घटना
मालिक के
रोटी फैंकते ही
एक कौआ
न जाने कहाँ से
उतरा जमीन पर
झट से रोटी को
दबाकर चोंच में
उड़ गया फुर्र से
कुत्ता बेतहाशा उसके पीछे दौड़ा
मगर उसकी दौड़-धूप भी
कोई रंग न लाई
हारकर
थककर
टूटकर
एक मजदूर की भाँति
विवश-सा होकर
वह बैठ गया
और उससे थोड़ी दूरी पर
वह कौआ
पेड़ की शाख पर
ऐसे ही बैठा था जैसे
बैठा हो
मिल मालिक कोई .
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1 comments:
भाई साहब आज तो आपने एक बेहतरीन रचना पढ़वा दी ।
शुक्रिया !
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