तुम मुझे पंत कहो, मैं तुम्हे निराला...

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  • Tuesday, September 6, 2011
  • by
  • महेन्द्र श्रीवास्तव
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  • मै जानता हूं कि ये लेख मेरे लिए आत्महत्या करने से कम नहीं है, क्योंकि इससे लोग नाराज हो सकते हैं, उन्हें लग सकता है कि ये लेख उनकी आलोचना करने के लिए लिखा गया है। लेकिन सच बताऊं इसमें किसी की आलोचना नहीं है। पांच छह महीनों में व्लाग पर जो कुछ देख रहा हूं, उसके बारे में ये मेरी व्यक्तिगत राय है। मिंत्रों मैं जो सोचता हूं, उसे अंजाम तक पहुंचाए बगैर चैन की नींद सो ही नहीं पाता हूं। इसलिए आज बात करुंगा ब्लागर्स की, जिसे मैं एक परिवार मानता हूं, इसलिए आप कह सकते हैं बात होगी पूरे ब्लाग परिवार की। "ब्लाग परिवार" के नाम से एक ब्लाग भी है, वो सभी लोग माफ करेंगे, क्योंकि हम जो बात कह रहे हैं वो किसी भी खास व्यक्ति, व्लाग या समूह के लिए नहीं है, बल्कि सभी के लिए है।
    मैं बिना किसी भूमिका के इस बात की शुरुआत कर रहा हूं। वैसे तो शीर्षक से ही साफ है कि मैं क्या कहना चाहता हूं। जी हां ज्यादातर ब्लागर्स के लिए मेरी अब तक यही राय है कि तुम मुझे पंत कहो तो मैं तुम्हें निराला कहूंगा। भाई "गिव एंड टेक" कहीं से गलत नहीं है। लेकिन कई बार किसी भी लेख या रचना पर टिप्पणी देखता हूं तो हैरान हो जाता हूं। उसमें लेख के बारे में तो दो शब्द और लेखक की प्रशंसा कई पंक्तियों में। पहली नजर में तो ये अटपटा लगा, फिर मैने देखा कि जिस ब्लागर भाई ने लेखक की इतनी तारीफ की है, इसकी वजह क्या है। जब मैं उसके ब्लाग पर गया तो देखा कि उन्होंने तो सिर्फ कर्ज अदा किया है, क्योंकि ये टिप्पणी और भावनाओं का आदान प्रदान है।
    कुछेक मंचों की चर्चा करना भी जरूरी है। जहां लोगों के ब्लाग के लिंक शामिल कर दिए जाते हैं और दूसरे ब्लागर्स को आमंत्रित किया जाता है कि आप इन्हें भी पढें। मेरा अपना मानना है कि ये बहुत अच्छा प्रयास है, कुछ लोग बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के नए लेखकों को मंच दे रहे हैं, यहां से उनके ब्लाग के लिंक्स बहुत सारे लोगों के बीच पहुंच जाती है। पर बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है इसमें ईमानदारी नहीं बरती जाती।
    चर्चाकार पहले तो अपनी चर्चा करते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है। फिर साथी चर्चाकारों पर उनकी नजर जाती है, मुझे लगता है कि उसमें भी कोई बुराई नहीं है। फिर अपने शहर और प्रदेश को निपटाते निपटाते वो बुरी तरह थक चुके होते हैं, तब दूसरे लोगों की बारी आती है। ऐसे में शुरू में जिनकी बारी आ गई, उनकी तो बल्ले बल्ले हैं। बाद वालों का भगवान ही मालिक है। हां एक बात और किस ब्लागर की तस्वीर लगेगी, किसकी नहीं। इसका भी को निर्धारित मानदंड नहीं है। ये निजी और व्यक्तिगत संबंधों पर निर्भर है।
    अब तो दुनिया बहुत आगे हो गई, वरना कुछ साल पहले आप किसी भी शहर में निकलें तो सिनेमा के पोस्टर दीवारों पर देखे जाते थे। लेकिन मित्रों पोस्टर में भले ही अमिताभ बच्चन क्यों ना हों इन्हें जगह कूडा करकट के आसपास की ही दीवारों पर मिलती थी। कुछ ऐसा ही ब्लागों में मैं दिखाई दे रहा है। किसकी कहां तस्वीर मिल जाएगी, कोई भरोसा नहीं। मित्रों माफ कीजिएगा एक मसाले का विज्ञापन याद आ रहा है, उसके मालिक अपने विज्ञापन में किसी माडल को तरजीह नहीं देते हैं। वो बुजुर्गवार खुद ही तरह तरह की मुद्रा में छाए रहते हैं। ऐसे ही कई लोगों को अक्सर ब्लागों पर भी देखता हूं।
    मित्रों ब्लागों की चर्चा अच्छी बात हैं, हम जैसे नए लोगों को काफी प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन चर्चा को चमचागिरी से आगे लाने की जरूरत है। चर्चाकार सिर्फ लिंक्स लगाने का काम ना करें, जिस लिंक्स को वो शामिल कर रहे हैं, उसके बारे में अपनी राय भी लिखें, ये रचना क्यों उन्हें पसंद आई। बेहतर तो ये होगा कि जिस तरह से टीवी और समाचार पत्रों में फिल्मों की समीक्षा के साथ उन्हें ग्रेड दिया जाता है, उसी तरह का कुछ ग्रेड ब्लाग पर भी हो तो बेहतर है। लेकिन इससे चर्चा इतनी आसान नहीं रह जाएगी, चर्चाकारों को सभी लेख, कहानी, कविता को पढना होगा, क्योंकि ग्रेड भी देना होगा। इसके फायदे भी होंगे कि लोग कम से कम उन ब्लागों पर तो चले ही जाएंगे, जिन्हें अच्छे ग्रेड मिले होंगे।
    अभी तो हालत ये है कि जिनके लिंक्स चर्चा में शामिल होते हैं, वो आकर अपना फर्ज अदा कर देते हैं। सुंदर लिंक्स, और मुझे भी शामिल करने के लिए शुक्रिया। शामिल करने के लिए शुक्रिया की बात तो समझ में आती है, लेकिन इतनी जल्दी सुंदर लिंक्स कैसे वो समझ जाते हैं, ये कम से कम मेरी समझ से परे है। मित्रों एक दिन एक चर्चा में 12 लोगों ने लिखा था कि बेहतर लिंक्स, सुंदर लिंक्स, बहुत अच्छे लिंक्स। बाद में मैने उस दिन की चर्चा में शामिल सभी लेखों, कविताओं और कहानियों को देखा तो चर्चा पर कमेंट करने वाले सभी 12 ब्लागर साथी कहीं नहीं दिखे। कुछ हमारे साथी "कट पेस्ट" के भी एक्सपर्ट हैं। कई बार होता है लेख और उसपर कमेंट देखता हूं, बहुत सुंदर कविता।
    खैर, मुझे लगता है कि जो बात मैं कहना चाहता हूं, वो बात सभी तक पहुंच गई होगी। बडे और बुजुर्ग में इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन उन्हें भी पोस्टर मोह त्यागना होगा। वैसे मुझे उम्मीद कम है। वो इसलिए भी कम है कि समीक्षा करने वाले जो ब्लागर पहले अपनी छोटी तस्वीर लगाया करते थे, अब अपनी पूरी तस्वीर लगाने लगे हैं। मैं बडे ही विनम्रता से एक और बात कहना चाहता हूं कि एकाध जगह मुझे जाति विरादरी की भी बू आती है।
    और हां यहां भी मैने तमाम बुजुर्गों को अन्ना के साथ खडे़ देखा है। ब्लाग पर भी खूब नारे लगे हैं, मैं भी अन्ना, तू भी अन्ना, अब तो सारा देश है अन्ना। अन्ना को समर्थन देंने से बेहतर है कि लोग ईमानदारी का शपथ लें। चलिए मित्रों बंद करता हूं हम सभी घर बनाने की कोशिश करेंगे गिरोह नहीं।

    8 comments:

    रश्मि प्रभा... said...

    बाप रे बाप .... यह साहित्यिक आदान प्रदान तो चपेट में आ गया .... किसी को नहीं छोड़ा . याद आ गई ये पंक्तियाँ ' कलम या कि तलवार ' तो भाई ये है कलम का चमत्कार

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

    बहुत खूब!

    Maheshwari kaneri said...

    वाह: बहुत सुन्दर सार्थक आलेख..

    डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

    यहाँ मैं चर्चाकारों की तरफ से एक सपष्टीकरण अवश्य देना चाहूँगा . कोई भी व्यक्ति नेट पर मौजूद सभी ब्लॉगस को तो देख नहीं सकता , वह सिर्फ उन्हीं ब्लॉगस के लिंक देता है जिनको वह व्यक्तिगत रूप से जानता है या जो किसी तरीके से अपने ब्लॉग का लिंक चर्चाकार तक पहुंचाते हैं या जिनके ब्लॉग किसी अग्रीगेटर पर होते हैं . कुछ लोगों के ब्लॉग तो पूरी तरह से खुलते ही नही , आपका आधा सच भी उन्हीं में से एक है , फिर कैसे कोई लिंक ले सकता है

    आपने निस्संदेह अच्छा लिखा है लेकिन भाई-भतीजावाद का जो आरोप आप चर्चाकारों पर लगते दिख रहे हैं उससे कम-से-कम मैं तो सहमत नहीं .

    Er. सत्यम शिवम said...

    नमस्कार महेन्द्र जी..बहुत ही दिलचस्प है यह समीक्षा हमारी मनोवृतियों का......सुधार की आवश्यक्ता है....स्वयं में..फिर सबकुछ खुद ब खुद अच्छा हो जायेगा...धन्यवाद।

    मदन शर्मा said...

    बहुत सुन्दर सार्थक आलेख,
    आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार!!

    महेन्द्र श्रीवास्तव said...

    श्री दिलबाग विर्क जी,
    मुझे लगता है कि मैने नए ब्लागर्स की पीडा को सिर्फ शब्द दिया है। इसलिए स्पष्टीकरण जैसा ये कोई मसला नहीं हैं।

    हां मुझे आपकी उस बात से पीडा पहुंची है, जहां आप बहुत व्यक्तिगत हो गए। मुझे लगता है कि मैने ऐसा इसलिए लिखा है क्योंकि मेरे ब्लाग को आप चर्चा में शामिल नहीं करते।

    मैं आपको सिर्फ जानकारी के लिए बताऊं कि ये बात बिल्कुल गलत है। क्योंकि मैने जब भी कुछ ऐसा लिखा है, जो मंचो पर शामिल करने योग्य था, तो लगभग सभी जगहों पर मुझे स्थान मिला है। वो चाहे चर्चा मंच हो, ब्लाग फार वार्ता, ब्लाग परिवार, तेताला, हिंदी ब्लागर्स फोरम इंटरनेशनल आदि सभी ने मुझे जगह दिया है। इसलिए व्यक्तिगत रुप से मेरी कोई शिकायत किसी मंच से नहीं है।
    मेरे विचार को व्यापक अर्थ में देखने की जरूरत है।

    vandana gupta said...

    mahnedra ji
    ye blogjagat hai aur yahan bhi sabhi tarah ke prani paye jate hain ...........bas isi me sabhi ko samnjasya bithakar chalna padta hai.........aap abhi naye aaye hain to aapka is tarah prashn uthana swabhavik hai kyunki abhi aap yahan ka chalan nahi jante........jahan tak charcha ki bat hai to jo bhi links charchakar ke paas uplabdh hote hain wo unhi me se select karta hai aur jahan tak grade dene ki bat hai to uski kisi kojaroorat nahi hai kyunki phir usme bhi yahi aarop lagega ki bhai bhatijavad chal raha hai ........ek charchakar ka sirf itna hi uddeshya hota hai ki wo un links ko jyada se jyada logon tak pahunchaye aur aapne dekha hoga ki kitne hi naye links isi tarah sab tak pahunchte hain to kya isme charchakar ki mehnat nahi hoti? kahna bahut aasan hai har bat ke liye magar jo log charcha lagate hain ek baar unse poochhiye aur na poochiye ek baar aap charcha lagakar dekhiye guarantee hai kuch dino me hi aap kahenge ki bas aur nahi...........charcha karna koi aasan kam nahi hota aur isme kabhi koi dukhi to koi sukhi hoga hi iske liye sirf charchakar par dosh madhna thik nahi hai.........maine khud kitne time charcha lagayi hai isliye janti hun ki kitni mushkil hoti hain aur kitna vakt dena padta hai.......isi vajah se mujhe charchamanch chodna pada kyunki vakt ijazat nahi de raha tha...........shaukiya kam karna alag bat hai aur lagan aur nishtha se karna alag........isliye aap kisi ke gun dosh na dekhkar ye dekhiye ki aap kitne blogs roj padhte hain aur comment karte hain............aur sirf apna karm karte chaliye sabki apni apni limitations hoti hain ........ummeed hai aapko koi bat buri nahi lagi hogi kyunki aapne aise prashna uthaye to socha uska swasth jawab to dena chahiye na ki yun hi achcha aalekh kahkar nikal jana..........mujhe pata hai ki aap sirf apni bat nahi kah rahe the aap ka drishtikon vyapak hai magar usme bhi sabki apni majbooriyan hoti hain .

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