आधुनिकता के नाम पर लड़के और लड़कियां बिना विवाह किए ही संबंध बना रहे हैं और जब दिल भर जाता है तो फिर संबंध तोड़ भी रहे हैं।
इन संबंधों से दोनों को कुछ वक्त के लिए सुकून भी मिलता है और ख़ुशी भी लेकिन जब ये रिश्ते टूटते हैं तो तकलीफ़ भी देते हैं और ज़िल्लत का अहसास भी कराते हैं। बहुत लोग ज़िल्लत और शर्मिंदगी का अहसास लेकर जीते रहते हैं और जो जी नहीं पाते वे ख़ुदकुशी करके मर जाते हैं।
मालिनी मुर्मु की ख़ुदकुशी भी इसी सिलसिले की एक और कड़ी है।
रिश्तों में पवित्रता ईश्वर के नाम से आती है।
पत्नी से संबंध केवल पवित्र इसीलिए तो होता है कि पति और पत्नी ईश्वर के नाम से जुड़ते हैं। जहां यह नाम नहीं होता वहां पवित्रता भी नहीं होती। आज जब लोग पवित्र रिश्तों की जिम्मेदारियों तक को लोग अनदेखा कर रहे हैं। ऐसे में मौज-मस्ती और टाइम पास करने के लिए बनाए गए रिश्तों की गरिमा को निभाने लायक इंसान बचा ही कहां है ?
ऐसे में या तो फिर बेशर्मों की तरह मोटी चमड़ी बना लो कि जानवरों की तरह जो चाहो करो और कोई कुछ कहे भी तो फ़ील ही मत करो। जब अहसासे शर्मिंदगी ही न बचेगा तो फिर कोई डिप्रेशन भी नहीं होगा।
लेकिन यह कोई हल नहीं है समस्या का।
समस्या का हल यह है कि रिश्तों की अहमियत को समझो और नेकी के दायरे से कदम बाहर मत निकालो। जब आप मर्यादा का पालन करेंगे तो ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी कि आप मुंह न दिखा सकें।
मालिक से जुड़ो, नेक बनो, शान से जियो और लोगों को सही राह दिखाओ।
Source
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/09/suicide-due-to-facebook.html
and
क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?
इन संबंधों से दोनों को कुछ वक्त के लिए सुकून भी मिलता है और ख़ुशी भी लेकिन जब ये रिश्ते टूटते हैं तो तकलीफ़ भी देते हैं और ज़िल्लत का अहसास भी कराते हैं। बहुत लोग ज़िल्लत और शर्मिंदगी का अहसास लेकर जीते रहते हैं और जो जी नहीं पाते वे ख़ुदकुशी करके मर जाते हैं।
मालिनी मुर्मु की ख़ुदकुशी भी इसी सिलसिले की एक और कड़ी है।
रिश्तों में पवित्रता ईश्वर के नाम से आती है।
पत्नी से संबंध केवल पवित्र इसीलिए तो होता है कि पति और पत्नी ईश्वर के नाम से जुड़ते हैं। जहां यह नाम नहीं होता वहां पवित्रता भी नहीं होती। आज जब लोग पवित्र रिश्तों की जिम्मेदारियों तक को लोग अनदेखा कर रहे हैं। ऐसे में मौज-मस्ती और टाइम पास करने के लिए बनाए गए रिश्तों की गरिमा को निभाने लायक इंसान बचा ही कहां है ?
ऐसे में या तो फिर बेशर्मों की तरह मोटी चमड़ी बना लो कि जानवरों की तरह जो चाहो करो और कोई कुछ कहे भी तो फ़ील ही मत करो। जब अहसासे शर्मिंदगी ही न बचेगा तो फिर कोई डिप्रेशन भी नहीं होगा।
लेकिन यह कोई हल नहीं है समस्या का।
समस्या का हल यह है कि रिश्तों की अहमियत को समझो और नेकी के दायरे से कदम बाहर मत निकालो। जब आप मर्यादा का पालन करेंगे तो ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी कि आप मुंह न दिखा सकें।
मालिक से जुड़ो, नेक बनो, शान से जियो और लोगों को सही राह दिखाओ।
Source
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/09/suicide-due-to-facebook.html
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क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?
1 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
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