401—71-03-11
ज़िन्दगी इक खेल है
हार जीत की रेलम पेल है
उम्मीद का मैदान है
हर शख्श खिलाड़ी है
उम्मीद जिसकी पूरी होती
वो जीता कहलाता
नाउम्मीद हारा बताया जाता
कोई खेल भावना से खेलता
नतीजे की परवाह ना करता
कोई जीतने के लिए खेलता
तरीके सब इस्तेमाल करता
किस को कैसे खेलना
फैसला ईमान खुद का
करता
मैदान के बाहर कभी
ना बैठना
ना कभी निराश होना
जन्म जब लिया दुनिया में
निरंतर खेलते रहना
नाम खुदा का लेते
रहना
10—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
2 comments:
nice post.
vastw me kamal ka post.
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