382—52-03-11
कौन
किस से कितना मिलता
निरंतर
साथ रहने वाला भी
कहाँ पूरा मिलता
कोई घंटों में मिलता
दिनों में मिलता
तो कोई बरसों में मिलता
कोई ख़्वाबों में मिलता
कोई ख्यालों में मिलता
मिलता फिर भी ज़रूर है
जब कैसे भी मिलना
कितना भी मिलना
फिर नफरत
किसी से क्यों रखना
अब जब भी मिलना
मुस्करा कर मिलना
हंस कर मिलना
गले लग कर मिलना
मिलकर खुश होना
ना नफरत रखना
ना नफरत से
मिलना
07—03-2011
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर",अजमेर
1 comments:
शुक्रिया हो ही नहीं सकता कभी उसका अदा
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ
मुहब्बत तो बस माँ की बेमिसाल होती है ।
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